ग्रामोद्योग का अर्थ क्या है ?

ग्रामोद्योग का अर्थ क्या है ? gramodyog ka arth kya hai ?

ग्रामोद्योग का अर्थ क्या है ? : ग्रामोद्योग का तात्पर्य यह है कि जो उद्योग ग्रामीण क्षेत्र में हो जहां की आबादी 20 हजार से अधिक न हो वहां स्थापित हो, जिसके उत्पादन व सेवा कार्य करने में विद्युत शक्ति का प्रयोग हो अथवा न हो एवं 50 हजार रूपये प्रति व्यक्ति पूंजी विनियोग से अधिक न हो ऐसी इकाईयों को ग्रामोद्योग माना जायेगा।

ग्रामोद्योग का अर्थ क्या है ?

ग्रामोद्योग से अर्थ ऐसे उद्योग से है, जो 20 हजार तक कि आबादी वाले क्षेत्र में स्थित हो और उसमें 50 हजार तक का प्रति व्यक्ति पूंजी निवेश हो। ग्रामोद्योग को पारिवारिक या कुटीर उद्योग भी कहते है।

खादी ग्रामोद्योग की वर्तमान स्थिति

वर्तमान में लगभग 50 लाख लोग खादी और ग्रामोद्योग इकाइयों और संस्थानों में कार्य करते हुए सीधे रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। इससे भी अधिक संख्या में लोग खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग द्वारा पोषित-आर्थिक सहायता प्राप्त विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से, अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित हो रहे हैं। वर्ष 2016 के आंकड़ों के अनुसार देशभर में खादी और ग्रामोद्योग आयोग पोषित अथवा सहायता प्राप्त कुल 3,91,344 उद्योग कार्यरत हैं।

फरवरी 2019 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने खादी ग्रामोद्योग विकास योजना को वर्ष 2019-20 तक जारी रखने की अनुमति दे दी है। इस योजना पर 2017-18 से 2019-20 की अवधि में कुल 2,800 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इस योजना के तहत एक नए आयाम ‘रोजगार युक्त गाँव’ को जोड़ा गया है जिससे खादी क्षेत्र में उपक्रम आधारित परिचालन शुरू किया जा सकेगा। इससे हजारों नए बुनकरों को चालू और अगले वर्ष में रोजगार के अवसर उपलबध होंगे। इसके अलावा प्रति गाँव में कुल पूंजी निवेश सब्सिडी के रूप में 72 लाख रुपये होगा तथा बिजनेस पार्टनर से प्राप्त वर्किंग कैपिटल के संदर्भ में यह सीमा 1.64 करोड़ रुपये की होगी। साथ ही सरकार ने खादी और ग्रामोद्योग की आठ अलग-अलग योजनाओं को अब अम्ब्रेला योजनाओं ‘खादी विकास योजना’ तथा ‘ग्रामोद्योग विकास योजना’ में विलय कर दिया है।

ग्रामोद्योग के कुछ प्रकार

ग्रामोद्योगों को कुछ रूप से 7 वर्गों में बांटा गया है –

चमड़ा व जूता उद्योग:-  इसमे मरे हुए जानवरों की खाल निकालने और उसका चमड़ा बनाकर जूते, चमड़े के थेले बनाए जाते है।

काष्ठ कला उद्योग:- इसमे खिड़कियाँ, छज्जा, स्तम्भ, जंगले, आलमारियाँ, लकड़ी के सन्दूक, फर्नीचर, मूर्तिया व घराट के उपकरण बनाते है।

हस्त निर्मित कागज उद्योग:-  इसमे कागज का उपयोग मुख्य रूप से जन्म कुण्डली, धार्मिक ग्रन्थ, राजस्व लेखे, जन्म-मृत्यु का लेखा आदि रखने में किया जाता है।

रेशा उद्योग:- इसमे मोटा घास भीमल (भिमू), मालू, जंगली कंडाली तथा बाबड़ जैसे रेशेदार घास तथा वृक्ष होते है। जिनका रेशा निकाल कर रस्सियां बनाई जाती है गाय, बैल, भैंस, घोड़े आदि जानवरों को बांधने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी। साथ ही इन रस्सियों को प्रयोग चटाई बनाने हेतु के लिए भी किया जाता है। भांग व सेल (भीमल के रेशे) से बनी रस्सियां बाहरी बाजारों में बेची जाती थी।

मधुमक्खी पालन:- इसमे मधुमक्खी पालन द्वारा एकत्रित शहद निकाला जाता था।

लौहारगिरी:- इसमे लोहे के कृषि औजार व बर्तन बनाने वाले कारीगरों को लौहार कहा जाता है। खेती के औजारों के अलावा, तलवार, खुकंरी, फर्सा, मूर्तियों सहित देवी देवताओं के निशान बनाते है।

ऊन उद्योग:- इसमे ऊन से बनी वस्तुएँ जैसे ओढ़ने-बिछाने के थुलमा, कोट, दन, ऊनी, कपड़ा, अंगरखा, पैजामा, कम्बल आदि पारिवारिक उपयोग हेतु तैयार किये जाते है।

महात्मा गांधी के ग्रामोद्योग के बारे में विचार

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दृष्टि लुप्तप्राय होते जा रहे ग्रामीण उद्योगों की ओर गई। उन्होंने स्वदेशी वस्त्र उत्पादन के कार्य को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1925 में ‘अखिल भारत चरखा संघ’ की स्थापना से खादी कार्य का सूत्रपात किया। गांधी जी का लक्ष्य खादी उद्योग के माध्यम से शोषण मुक्त समाज की रचना करना था। वर्ष 1947 तक यह उद्योग गांधी जी के मार्गदर्शन में रहा। 1948 में भारत की औद्योगिक नीति घोषित की गई जिसमें खादी और ग्रामोद्योग को देश के ग्रामीण आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण माध्यम मानते हुए उन्हें प्रोत्साहित करने का निश्चय किया गया।

खादी ग्रामोद्योग आयोग

लोगों में स्वावलंबन उत्पन्न करने और मजबूत ग्रामीण सामुदायिक भावना पैदा करने के साथ ही खादी ग्रामोद्योग आयोग को ग्रामीण इलाकों में गैर कृषि रोजगार सृजन के सतत स्रोत के रूप में एक महत्वपूर्ण संगठन के तौर पर जाना जाता है। यह कौशल विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, शोध और विकास, विपणन इत्यादि के क्षेत्र में सक्रिय रहता है और ग्रामीण क्षेत्रें में रोजगार उत्पन्न करने/स्वयं के रोजगार अवसर जुटाने में सहायता करता है।

खादी ग्रामोद्योग आयोग के मुख्य उद्देश्य

  • इसका सामाजिक उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराना है।
  • इसका आर्थिक उद्देश्य बिक्री योग्य वस्तुओं का उत्पादन करना है।
  • इसका व्यापक उद्देश्य लोगों में स्वावलंबन तथा एक मजबूत ग्रामीण सामुदायिक भावना का निर्माण करना है।

कार्य

  • खादी ग्रामोद्योग आयोग के कार्य, खादी ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956 (1956-61) के तहत बनाए गये नियमों के अनुरूप हैं। इनमें निम्नलििऽत बिन्दु शामिल हैं-
  • खादी और ग्रामीण उद्योगों में रोजगार प्राप्त करने के इच्छुक या उनमें काम कर रहे व्यक्तियों के प्रशिक्षण की योजना बनाना और उन्हें आयोजित करना।
  • हाथ से सूत कातने या खादी के उत्पादन या ग्रामीण उद्योगों में लगे लोगों या उत्पादन कार्य में लगाए जाने वाले लोगों के लिए आयोग द्वारा तय दर पर प्रत्यक्ष या निर्दिष्ट एजेंसियों के माध्यम से कच्चा माल उपलब्ध कराना।
  • कच्चा माल के प्रसंस्करण या अर्द्धनिर्मित वस्तुओं के लिए आम सुविधा मुहैया कराना तथा खादी और ग्राम उद्योग उत्पादों के उत्पादन तथा विपणन में सहायता प्रदान करना।
  • खादी और ग्रामोद्योग उत्पाद या हथकरघा उत्पादों की बिक्री और विपणन को बढाने के लिए बाजार की एजेंसियों से आवश्यकता अनुसार संपर्क स्थापित करना।
  • खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों के निर्माण के लिए गैर परम्परागत ऊर्जा तथा बिजली के इस्तेमाल से शोध और प्रौद्योगिकी को बढावा देना जिससे कि उत्पादन बढ़ सके और नीरसता दूर हो, साथ ही इस तरह के शोध से उत्पादन की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता बढ़े।
  • खादी और अन्य ग्रामीण उद्योगों की समस्याओं के बारे में प्रत्यक्ष या दूसरी एजेंसियों के माध्यम से अध्ययन करना।
  • खादी और ग्रामीण उद्योगों के काम में लगे व्यक्तियों या संस्थानों को प्रत्यक्ष या विशेष एजेंसियों के माध्यम से सहायता उपलब्ध कराना तथा डिजाइन, प्रोटोटाइप और अन्य तकनीकी जानकारी देना।
  • खादी और ग्रामीण उद्योगों के विकास के लिए आयोग के विचार में आवश्यक समझे जाने वाले प्रयोग या पायलट परियोजनाओं को प्रत्यक्ष रूप से या विशेष एजेंसियों के माध्यम से चलाना।
  • उपरोत्तफ़ मामलों में से एक या सभी को पूरा करने के उद्देश्य से अलग संगठन स्थापित करना और उन्हें चलाना।
  • खादी उत्पादन और ग्रामीण उद्योग में लगे उत्पादन कर्ताओं के बीच सहकारी प्रयासों को बढावा देना और प्रोत्साहित करना
  • खादी और ग्रामोद्योग के विशुद्ध उत्पाद सुनिश्चित करना तथा गुणवत्ता और मानक तय कर उत्पादों को उसी के अनुरूप निर्मित करना तथा संबंधित व्यक्तियों को प्रमाणपत्र या मान्यता पत्र प्रदान करना।

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